Tuesday, February 2, 2010

अँधेरा बहुत घना था ....

रास्ते थे मुस्किल ..
राह मैं थी कठिनाइया …
आज दिल भी भारी हो रहा था ..
सुबह से मन मैं कोई सुइया चुभो रहा था ..
पता नहीं क्या हो रहा था …
मैं आज आखो से नहीं दिल से रो रहा था …
आखे आज सबको हमारी उदासी दिखा रही थी ...
चेहरा भी आज पतजड के मौसम की तरह मुर्जय हुआ था …
वक़्त ने तो आज न चलने की कसम खा ली थी …
हर पल मैं तन्हाइयो की लहरों मैं डूबता जा रहा था …
लग रहा था आज का कभी अंत भी होगा या नहीं …
रात होने को थी ..
राहे धुंधली से हो रही थी …
गम का सागर तान्हाहियो की लहरों को लीये हुए …
बहुत दूर दूर तक कोई बचने वाला नहीं दिख रहा था…
मैं आज आपने आप को कही और ही पा रहा था …
बिच समुन्दर मैं अकेला छोटी से नाव मैं …
अंधरे के काले बादल आज तारो को भी छुपा रहे थे …
हमारी किस्मत भी आज कोई खेल खेल रही थी …
हम तो आज चाँद को देख कर ही खुस होने की सोच रहे थे …
पर अंधेरो के काले बदलो ने आज सब कुछ छुपा लिया था …
अँधेरा इतना घना था की हम तो आपने आप को भी महसूस नहीं कर पर रहे थे ..

फिर उस समय जब लग रहा था …
आज तो जीवन का अनत ही है ..
तो मैं आपने गुरु और भगवान को याद किया …
जीवन का आखरी पल समाज कर अंतिम प्रणाम किया …
उस के बाद तो मुझे कुछ याद नहीं …
कब मेरी आख लगी और सवेरा हो गया …
.......

No comments:

Post a Comment